भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बड़ी दुश्वार हैं राहे जो तू दे साथ चलते हैं / पूजा श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड़ी दुश्वार हैं राहे जो तू दे साथ, चलते हैं
समन्दर है जहाँ तक भी किनारे, साथ चलते हैं

नहीं थमते सुबह और रात के मानिंद पलकों में
नज़र जाए जहाँ तक भी, इशारे साथ चलते हैं

अजब थे लोग जो तन्हा ही मंज़िल को झुका आए
यहाँ तो हर कदम संगी सहारे साथ चलते हैं

ज़रा सी बात पर यूँ रूठकर बैठा नहीं करते
ये रिश्ते तो सदा बनते बिगड़ते साथ चलते हैं

हमारे वास्ते तो दश्ते वीरां भी नहीं तनहा
जहाँ से हम गुज़रते हैं ये जलसे साथ चलते हैं

उठा रक्खे हैं कांधों पर ग़मे असबाब सब तेरे
न ये कहना कि हम नाहक ही तेरे साथ चलते हैं

हमारा दिल भी है मुफ़लिस के खाली पेट के जैसा
तसल्ली साथ रखता है तो फ़ाके साथ चलते हैं

ग़मों को भी गुज़र करने का कोई तो सहारा हो
नहीं मिलता है इनको तू तो मेरे साथ चलते हैं

ज़रूरी तो नहीं कि दोस्ती हरदम निभायेगा
कभी सूरज से बिगड़े तो अँधेरे साथ चलते हैं