बड़ी हो रही है लड़की / रघुवीर सहाय
जब वह कुछ कहती है
उसकी आवाज़ में
एक कोई चीज़
मुझे एकाएक औरत की आवाज़ लगती है
जो अपमान बड़े होने पर सहेगी
वह बड़ी होगी
डरी और दुबली रहेगी
और मैं न होऊँगा
वे किताबें वे उम्मीदें न होंगी
जो उसके बचपन में थी
कविता न होगी साहस न होगा
एक और ही युग होगा जिसमें ताक़त ही ताक़त होगी
और चीख़ न होगी
लम्बी और तगड़ी बेधड़क लड़कियाँ
धीरज की पुतलियाँ
अपने साहबों को सलाम ठोंकते मुसाहिबों को ब्याहकर
आ रही होंगी, जा रही होंगी
वह खड़ी लालच से देखती होंगी उनका क़द
एक कोठरी होगी
और उसमें एक गाना जो खुद गाया नहीं होगा किसी ने
क़ैदी से छीनकर गाने का हक़ दे दिया गया होगा वह गाना
कि उसे जब चाहो तब नहीं, जब वह बजे तब सुनो
बार बार एक एक अन्याय के बाद वह बज उठता है
वह सुनती होगी मेरी याद करती हुई
क्योंकि हम कभी-कभी साथ-साथ गाते थे
वह सुर में, मैं सुर के आसपास
एक पालना होगा
वह उसे देखेगी और अपने बचपन कि यादें आएँगी
अपने बच्चे के भविष्य की इच्छा
उन दिनों कोई नहीं करता होगा
वह भी न करेगी I