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बड़े-बड़े बेकार हो गये / हरि फ़ैज़ाबादी
Kavita Kosh से
बड़े-बड़े बेकार हो गये
होनी में लाचार हो गये
मुसीबतों में साथी मेरे
घर के कुछ उपकार हो गये
ऐसा क्या कर बैठे जो तुम
मरने को तैयार हो गये
फूलों की आपसी कलह में
काँटे भी दमदार हो गये
ज़ख़्म कौन अब किसका पोंछें
दामन-दामन ख़ार हो गये
रौनक़ आई तब महफ़िल में
ख़ाली जब बाज़ार हो गये
क़लम हाथ में लेते दिल के
ज़ाहिर ख़ुद उद्गार हो गये