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बढ़लोॅ जा / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
Kavita Kosh से
देखने जा, बढ़लोॅ जा!
काँटोॅ-कूशोॅ पर्वत-घाट
बीहड़ जंगल सून-सपाट
सब पर लीख गढ़ने जा
सब छाती पर चढ़लोॅ जा।
मुरझैलोॅ फूलोॅ के ठोर
दुखिया के हररोशी-शोर
सब के लोर पोछने जा
सब लग अड़लोॅ-अड़लोॅ जा!
फूल-कली के मस्ती में
सुन्दरता के बस्ती में
डूबलोॅ जा आनन्द लहर में
भाव-विभोर उमड़लोॅ जा!
जब तक छौं जिनगी के साँस
हुवोॅ तनिक नै हतोपराश
सब के मन में खुशियाली के
बीया बनी गजुरलोॅ जा!