भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बढ़ी छगुनी गुनी लिखलेॅ छी पतिया रे / राम शर्मा 'अनल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बढ़ी छगुनी गुनी लिखलेॅ छी पतिया रे
लेॅ लेॅ जहियै हमरो नेहर पुरबैया
कतेॅ बछर भेलै मैया देखला सें
टोला परोसा याद आबै पुरबैया
मंदिर शिवालय जहाँ मठ गुरुद्वारा शोभै
यहॅे हमरोॅ नैहर ठिकाना पुरबैया
कमलोॅ रोॅ फूलोॅ पर भौरा मँढ़राबै जहाँ
भेंटमास पाटी पारी नाँचै पुरबैया
महामोद करी नित करै वकुल फूल
केसर क्यारी झूमी झूमी नाँचै पुरबैया
अतिथि केॅ लोगे जहाँ भगवॉन मानै रे
पाहन तक पूजा जहाँ पाबै पुरबैया
सुब्ह मंगल लू लू गाबै
दिया बारी संझा सजाबै पुरबैया
छवो ऋतु पारापारी रंग विरंग घोरै
कदम्ब नीचेॅ धेनु पगुराबै पुरबैया
आधी आधी राती जहाँ कुहकै कोयलिया रे
महुवा यदन रस चुवै पुरबैया
वेद पुराण जहाँ शंख घढ़ियाल बाजै
चंदन ललाट जहाँ शोभै पुरबैया
भैया सब माथा शोभै फाग केशरिया हे
माता पिता गीता ज्ञान गाबै पुरबैया
बारहो महिना जहाँ पपीहा डाकै नित
विरहन अनल पुजारी पुरबैया