भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बताऊँ तुम्हें क्या है दिल का लगाना / देवी नागरानी
Kavita Kosh से
ख़ता अब बनी है सजा का फ़साना
बताऊँ तुम्हें क्या है दिल का लगाना
हवा में न जाने ये कैसा नशा है
पिये बिन ही झूमे है सारा ज़माना
यहां रोज सजती है खुशियों की महफ़िल
मचलता है लब पर खुशी का तराना
सदा घूमते हैं सरे-आम खतरे
बहुत ही है दुश्वार खुद को बचाना
करें कैसे अपने-पराये की बातें
दिलों ने अगर दिल से रिश्ता न माना