बता दे रे सखी, साँवरा को डेरो कितीं दूर ।
इत गोकुल उत मथुरा नगरी, जमुना बहत भरपूर ।
इत मथुरा की मस्त ग्वालिन, मुख पर बरसत नूर ।
चन्द्रसखी भजु बालकृष्ण छिब, साँवरे से मिलनो जरूर ।
बता दे रे सखी, साँवरा को डेरो कितीं दूर ।
इत गोकुल उत मथुरा नगरी, जमुना बहत भरपूर ।
इत मथुरा की मस्त ग्वालिन, मुख पर बरसत नूर ।
चन्द्रसखी भजु बालकृष्ण छिब, साँवरे से मिलनो जरूर ।