Last modified on 6 अगस्त 2010, at 22:04

बता फिर क्या किया जाए / हरीश भादानी

 बता फिर क्या किया जाए


    सड़क फुटपाथ हो जाए
    गली की बांह मिल जाए
सफ़र को क्या कहा जाए
        बता फिर क्या किया जाए


    नज़र दूरी बचा जाए
    लिखावट को मिटा जाए
क्या इरादे को कहा जाए
        बता फिर क्या किया जाए


    स्वरों से छन्द अलगाएँ
    गले में मौन भर जाएँ
ग़ज़ल को क्या कहा जाए
        बता फिर क्या किया जाए


    उजाला स्याह हो जाए
    समंदर बर्फ हो जाए
कहां क्या-क्या बदल जाए
        बता फिर क्या किया जाए


    आदमी चेहरे पहन आए
    लहू का रंग उतर जाए
किसे क्या-क्या कहा जाए
        बता फिर क्या किया जाए