हज़ारों वर्षों की अपनी बदलती हुई परम्परा को
अपने में जीवन्त किए हुए
विश्व के तमाम ज्ञान-विज्ञान से निरन्तर टकराते हुए
आज के समर्थ यथार्थ के रू-ब-रू खड़े
मेरे आदर्शों के मूर्तरूप हैं त्रिलोचन जी
बता रहे हैं
जब किशोर थे
आचार्य शुक्ल से मिलने उनके घर जाते थे
उसी वक़्त वे उनसे सीधे टकराते थे
बता रहे हैं त्रिलोचन जी
कभी 'हंस' में उपसम्पादक थे
मुक्तिबोध थे डिस्पैचर, पर मुक्तिबोध कितने आगे हैं ।
बता रहे हैं त्रिलोचन जी
व्यक्ति सरल ऎसा भी होता
जैसे हैं शमशेर बहादुर !
त्रिलोचन जी बाबा के
गुरुत्व भार को तौल रहे हैं
त्रिलोचन जी बता रहे हैं
कितने प्रखर आलोचक हैं नामवर सिंह
बता रहे हैं त्रिलोचन जी
काशी के अपने संघर्षों को
याद्कर रहे
कई लेखकों से अपने
सम्बन्धों का इतिहास कह रहे
बात-बात में बार-बार वे
कोश-ज्ञान प्रस्तुत कर रहे
त्रिलोचन जी बोल रहे
तब त्रिलोचन हैं
किन्तु रहन-सहन में अब भी
वासुदेव हैं
कम-कीमती कुर्ता-पाजामा
कम कीमती ही घिसी-सी चप्पल
कंधे से झूलता एक झोला
जैसे अपने गाँव-जवार से
अभी-अभी आए हों दिल्ली
ऊबड़-खाबड़
देहाती से लगने वाले
सानेटिया इस त्रिलोचन से
हिन्दी वाले खफ़ा रहे हैं
रुचते नहीं त्रिलोचन उनको
मैं देहाती
गँवई लेखक
त्रिलोचन के पास खड़ा हूँ
मेरे आदर्शों के
मूर्त रूप हैं त्रिलोचन जी ।