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बदन सिमटा हुआ और दश्त-ए-जाँ फैला हुआ है / सालिम सलीम

बदन सिमटा हुआ और दश्त-ए-जाँ फैला हुआ है
सो ता-हद्द-ए-नज़ वहम ओ गुमाँ फैला हुआ है

हमारे पाँव से कोई ज़मीं लिपटी हुई है
हमारे सर पे कोई आसमाँ फैला हुआ है

ये कैसी ख़ामुशी मेरे लहू में सर-सराई
ये कैसा शोर दिल के दरमियाँ फैला हुआ है

तुम्हारी आग में ख़ुद को जलाया था जो इक शब
अभी तक मेरे कमरे में धुआँ फैला हुआ है

हिसार-ए-ज़ात से कोई मुझे भी तो छुड़ाए
मकाँ में क़ैद हूँ और ला-मकाँ फैला हुआ है