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बदलते रहे हैं हम / इधर कई दिनों से / अनिल पाण्डेय

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हम सो रहे हैं अब भी
चेतना हमारी सोई हुई थी सालों से
वो आते रहे जगाने के वेश में
ईश्वर बन हमारे लिए
बदलते रहे हम
अपनी सम्पूर्णता लिए श्मशान के देश में ॥