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बदलाव / आभा पूर्वे
Kavita Kosh से
जस दिन पकड़ी थीं
तुमने मेरी कोमल नरम अंगुलियाँ
उसी दिन से भर गई हूँ मैं
एक कोमल अहसास से
और रिक्त ही नहीं हो पाती हूँ इससे
कि मेरी ये सारी अंगुलियाँ
चंदन के छोटे-छोटे बिरवे हो गयी हैं।