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बदल दिये हमने / सदानंद सुमन
Kavita Kosh से
अब भी है कायम
धरती, आकाश, समुद्र,
सूर्य, चाँद, सितारे
ग्रह और नक्षत्र भी हैं ज्यों के त्यों
अब भी खिलते हैं फूल
तितलियों का आवागमन
भौरों का कलियों से मिलन
चहचहाते पंछियों का गुंजन
जारी है पूर्ववत्
उगती-कटती फसलें
अब भी समय पर
नहीं बदले
नमक और चीनी के स्वाद
बावजूद इसके हमारे ही सामने
बदल गईं बहुत सारी चीजें आज
मसलन
बदले गाँवों के चौपाल
संबंधों के अर्थ
रस्म और रीति-रिवाज
बदल गई धर्मों की व्याख्यायें!
खुदगर्जी का ये कैसा आ गया हाहाकार भरा समय
कि अपनी सुविधा के लिए
बदल दिये हमने
शब्दों के भी अर्थ!