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बदहाल आज़ादी / नाज़िम हिक़मत / विनोद दास

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बर्बाद करते रहते हो तुम अपनी आँखों की नज़र
अपने हाथों की बेशक़ीमती मेहनत
और उन दर्जनों रोटियों के लिए गूंधते हो भरपूर आटा
जिसका एक निवाला भी तुमको चखने को नहीं मिलता ।
बस ! तुम दूसरों का ग़ुलाम बनने के लिए आज़ाद हो ।

पैदा होते ही तुम्हारे चारों तरफ़
वे बिठा देते हैं झूठ कातने का कारख़ाना ।
झूठ जिसके फन्दों में फँसे रहते हो तुम ज़िन्दगी भर
कनपटी पर ऊँगली रखे हुए
अपनी महान आज़ादी के बारे में तुम सोचते रहते हो
कि किस तरह रखें अपने ज़मीर को पूरी तरह आज़ाद ।

तुम्हारा सिर ऐसे झुका रहता है जैसे गर्दन से कटा हो आधा
तुम्हारी लम्बी-लम्बी बाहें लुँज -पुँज सी झूलती रहती हैं
अपनी महान आज़ादी में कुलाँचे मारते हुए
बेरोज़गार बने रहने की आज़ादी के लिए
तुम बिलकुल आज़ाद हो ।

दिल के सबसे क़रीब और सबसे बेशक़ीमती चीज़ की तरह
तुम करते हो अपने मुल्क से मोहब्बत
लेकिन किसी दिन
वे तुम्हारे मुल्क को अमेरिका को सौंप देगें
यही नहीं , तुम्हें भी और तुम्हारी आज़ादी को भी ।

तुम हवाई सैनिक अड्डा बनने के लिए आज़ाद हो ।

तुम ढिंढोरा पीटकर कह सकते हो
कि न तो यहाँ किसी को किसी का औज़ार बनकर रहना चाहिए
न बनकर रहना चाहिए सिर्फ़ एक संख्या
और न ही कोई कड़ी
बल्कि रहना चाहिए एक ज़िन्दा धड़कते इनसान की तरह
हालाँकि यह कहते ही
वे फौरन तुम्हारी कलाइयाँ हथकड़ियों से जकड़ देंगे ।

तुम आज़ाद हो
गिरफ़्तार होने के लिए
क़ैदखाने में ठूँसे जाने के लिए
यहाँ तक कि फाँसी पर चढ़ाए जाने के लिए भी ।

तुम्हारी ज़िन्दगी में न तो लोहे या काठ की आड़ है
और न ही है टाट का पर्दा
तुम्हें आज़ादी पाने की ज़रूरत नहीं है
अगर्चे तारों की छाँव तले
ऐसी बदहाल आज़ादी बेमतलब है ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास