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बद्दल-पंखी मौसम / केदारनाथ अग्रवाल

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बद्दल-पंखी

चुप-चुप मौसम;

फुहियों के फाहों की

नम-नम

ढलती शाम;

मुट्ठी-बन्द उठे हाथों के

भीगे-भीगे पेड़,

ठिठके,

ठहरे,

पांव समय के,

हवा बन्द निस्पंद;

टूट रहा

टप-टप बूंदों से

सन्नाटे का कांच,

महानगर का मौन ।


('पंख और पतवार' नामक कविता-संग्रह से)