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बनानी है चिडिय़ा / उर्मिला शुक्ल
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नहीं अभी नहीं होगा
अवसान
अभी तो मुझे मांगना है आकाश से खुलापन
और
धरती से दृढ़ता
पानी से तरलता
और
पवन से श्वांस
फिर बनानी है
एक चिडिय़ा
जो नापेगी
सारा आकाश