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बनारस-1 / रामकृष्ण पांडेय
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एक गली में
कई गलियाँ
और उनमें भी
अनेक गलियाँ
जैसे किसी कथा में
कई कथाएँ
और उन कथाओं में भी
अनेक उपकथाएँ
और अंतर्कथाएँ
पर कोई रहस्य नहीं
सभी कथाएँ एक जैसी
एक जैसा दुख
एक जैसा सुख
एक ही जैसा हर्षोल्लास
एक ही जैसा विषाद
एक ही जैसी पीड़ा
फिर भी सब अलग-अलग
जैसे समानांतर रेखाएँ
हालाँकि गलियाँ
एक दूसरे को काटतीं
एक दूसरे में शामिल
हिली-मिलीं
कथाएँ भी
गलियों की ही तरह
दरअसल
सब मिलकर
एक ही बड़ी कथा
उसी की उपकथाएँ, अंतर्कथाएँ
फिर भी अलग-अलग