भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बना एक मक़सद से आलम तो होगा/ मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
Kavita Kosh से
बना एक मक़सद से आलम तो होगा ,
ये मक़सद ख़ुशी हो न हो ग़म तो होगा !
ख़ुदा नाख़ुदा हो वहम या हक़ीक़त ,
कि हर हाथ में कोई परचम तो होगा !
हुआ टूट कर कितना रोशन सितारा ,
मेरा ही तो था अक़्स कुछ दम तो होगा !
भटक चाँद तारों के ही साथ ऐ दिल ,
सफ़र ख़त्म चाहे न हो कम तो होगा !
महज़ बूँद बरखा की फिर भी ये सोचे ,
मेरे बाद तूफ़ां गया थम तो होगा !