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बना लें दोस्त हम सबको, ये रिश्ते रास आएँ क्यूँ / श्रद्धा जैन

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बना लें दोस्त हम सबको, ये रिश्ते रास आएँ क्यूँ
बने सागर अगर दुश्मन किनारे फिर बचाएँ क्यूँ

बजे जो साज़ महफ़िल में, हमारे हो नही सकते
हम इन टूटे हुए सपनों को आखिर गुनगुनाएँ क्यूँ

लहू बहता अगर आँखों से तो लाता तबाही, पर
मेरे ये अश्क के कतरे किसी का घर जलाएँ क्यूँ

बचेंगे वो कि जिनमें है बचे रहने की बेताबी
जिन्हें मिटने की आदत हो उन्हें हम फिर बचाए क्यूँ

ये शबनम तो नहीं ‘श्रद्धा’ तेरी ग़ज़लें हैं शोलों सी
किसी को ये रिझाएँ क्यूँ किसी के दिल को भाएँ क्यूँ