भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बनो मत / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बनो मत
सफाई की कोई ज़रूरत नहीं
तुम ने ये बखेड़ा किसलिए किया
सो मुझे पता है।

और तुम्हारा अहं तुष्ट हुआ भी
पर वहीं तुम चूक गये, प्यारेलाल !
जब मेरा सिर
तुम्हारें चरणों पर टिका
तुम नहीं समझ पाये
कि यह मैं नही
भय है-तुम्हारा ही दिया
जिसे सहारा चाहिए
जैसे भूख को रोटी
प्यास को पानी।

और तुम
जो ईश्वर होने जा रहे थे
एक वस्तु, एक जिंस बन कर रह गये।

इसे तुम्हारी नियति कहूँ
या कर्मफल
कि तुम अपने ही बुने जाल में फँसते चले गये
और तुम्हें लखाव भी नहीं पड़ा !

(1969)