भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बन्दूक की नोक पर बैठी चिड़िया / महाराज कृष्ण सन्तोषी
Kavita Kosh से
बन्दूक की नोक पर बैठी चिड़िया
कुछ देर के लिए
बन्दूक की नोक पर बैठी चिड़िया
और उनीन्दे सिपाही की आँखों में
डाल गई एक तिनका ओस भीगा
चिड़िया ने क्या देखा बन्दूक से
कोई नही जानता
पर सिपाही को अब बन्दूक से
केवल चिड़िया ही दिखाई देती है
जिसे वह अपने भीतर
चहचहाते हुए अनुभव करने लगता है
सोचता है सिपाही
कहीं उस की मृत बेटी
चिड़िया बनकर तो नही आई थी
अब हर बार
जब सिपाही ट्रिगर पर उँगली दबाता है
उसे अपनी बेटी की चीख़ सुनाई देती है
और वह काँप जाता है