भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बन्द खिड़की की देह पर / जय गोस्वामी / जयश्री पुरवार
Kavita Kosh से
बन्द खिड़की की देह पर हाथ रखा ।
सफ़ेद दीवाल की देह पर भी ।
गड्ढे बन गए दोनो जगहों पर ।
उन्ही में से एक गड्ढे में आज भी
आँखों पर दूरबीन लगाकर
आकाश की ओर देख रहे है गैलिलियो –
चर्च के निर्देशों से बेख़बर ।
दूसरे गड्ढे के भीतर मेज़ पर किताब - कापी लेकर
बैठे है बरीस पस्तिरनाक ।
उन दोनो गड्ढों के बीच की जगह में खुला-खुला-सा एक चबूतरा
थियेन - आन - मेन ।
चारों ओर फैली हुई हैं छात्र - छात्राओं की मृतदेहें
कुछेक अभी भी हिल रही हैं ।
उनलोगों के ऊपर से अभी -अभी
एक टैंक निकल कर चला गया ।
जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित