♦   रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
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बन्ना तो मेरा चाँदी का गिलास, चाँद देख शरमाया,
अपने बाबा जी के बागों में जाना, नोटों से जेब भराना।
लुटाना समधी के द्वार, चाँद देख शरमाया।
बन्ना तो मेरी चाँदी का गिलास, चाँद देख शरमाया।
बन्ना तो मेरा चाँदी का गिलास, चाँद देख शरमाया,
अपने पापा जी के बागों में जाना, नोटों से जेब भराना।
लुटाना समधी के द्वार, चाँद देख शरमाया।
बन्ना तो मेरी चाँदी का गिलास, चाँद देख शरमाया।
बन्ना तो मेरा चाँदी का गिलास, चाँद देख शरमाया,
अपने भईया जी के बागों में जाना, नोटों से जेब भराना।
लुटाना समधी के द्वार, चाँद देख शरमाया।
बन्ना तो मेरी चाँदी का गिलास, चाँद देख शरमाया।