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बन मन में / ठाकुरप्रसाद सिंह
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बन मन में
मन बन में
गए और खो गए
हम पतझड़ के-से
अब फागुन के हो गए
कुचले फन-सा तन-मन
बीन बजाता फागुन
द्वार बनेंगे झूले
ताल बनेंगे आंगन
सींच बीज वे जो
पिछले दिन थे बो गए
फागुन के हो गए