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बम शंकर बोलो हरी-हरि / नज़ीर अकबराबादी

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ले सब्रो क़नाअत साथ मियां, सब छोड़ यह बातें लोभ भरी।
जो लोभ करे उस लोभी की, नहीं खेती होती जान हरी॥
सन्तोख तवक्कुल हिरनों ने, जब हिर्स<ref>लोभ</ref> की खेती आन चरी।
फिर देख तमाशे कु़दरत के, और लूट बहारें हरी भरी॥
जब आसा तिश्ना दूर हुई, और आई गत सन्तोख भरी।
सब चैन हुए आनन्द हुए, बम शंकर बोलो हरी हरी॥1॥

टुक अपनी क़िस्मत देख मियां, तू आप बड़ा दातारी है।
पर हिर्सो तमाअ<ref>लालच</ref> के करने से, अब तेरा नाम भिखारी है॥
हर आन मरे है लालच पर हर साअत लोभ अधारी है।
ऐ लालच मारे, लोभ भरे, सब हिर्सो हवा की ख़्वारी है॥
जब आसा तिश्ना दूर हुई, और आई गत सन्तोख भरी।
सब चैन हुए आनन्द हुए, बम शंकर बोलो हरी हरी॥2॥

गर हिर्सो हवा और लालच की, है दौलत तेरे पास धरी।
तू ख़ाक समझ इस दौलत को, क्या सोना रूपा लाल ज़री॥
हाथ आया जब सन्तोख दरब<ref>द्रव्य, धन</ref>, तब सब दौलत पर धूल पड़ी।
कर ऐश मजे़ सन्तोखी बन, जय बोल मुरलिया वाले की॥
जब आसा तिश्ना दूर हुई, और आई गत सन्तोख भरी।
सब चैन हुए आनन्द हुए, बम शंकर बोलो हरी हरी॥3॥

इस हिर्सो हवा के बीजों को, जो लोभी दिल में बोते हैं।
वह चिन्ता मारे लोभ भरे, नित ख़्वार हमेशा होते हैं॥
जो हाथ पसारे लालच कर, वह माथा कूट के रोते हैं।
और हाथ जिन्होंने खींच लिया, वह पांव पसारे सोते हैं।
जब आसा तिश्ना दूर हुई, और आई गत सन्तोख भरी।
सब चैन हुए आनन्द हुए, बम शंकर बोलो हरी हरी॥4॥

इस लोभ पुरी की गलियों की, जब मुंह पर तेरे धूल पड़ी।
बेचैन रहेगा हर साअत, आराम न होगा एक घड़ी॥
चल लोभ के सर पर जूती मार, और लोभी तन पर मार छड़ी।
कर सुमिरन कुंज बिहारी की, जय बोल मुकुट की घड़ी-घड़ी॥
जब आसा तिश्ना दूर हुई, और आई गत सन्तोख भरी।
सब चैन हुए आनन्द हुए, बम शंकर बोलो हरी हरी॥5॥

वह शहद बुरा है लालच का, इस मीठे को मत खा प्यारे।
यह शहद नहीं यह ज़हर निरा, इस ज़हर उपर मत जा प्यारे।
जो मक्खी इसमें आन फंसी, फिर पंख रहे लिपटा प्यारे।
सर पटके रोये हाथ मले, है लालच बुरी बला प्यारे॥
जब आसा तिश्ना दूर हुई, और आई गत सन्तोख भरी।
सब चैन हुए आनन्द हुए, बम शंकर बोलो हरी हरी॥6॥

यह लोभ निरी पत खोता है, इस लोभी लालच मारे की।
यह लोभ चमक खो देता है, हर आन चमकते तारे की॥
तू एक तपक कर लालच पर, बन सूरत लाल अंगारे की।
कर याद मदन मतवारे की, जय बोल कन्हैया प्यारे की॥
जब आसा तिश्ना दूर हुई, और आई गत सन्तोख भरी।
सब चैन हुए आनन्द हुए, बम शंकर बोलो हरी हरी॥7॥

गर हिर्सो हवा के फंदे में तू अपनी उम्र गंवावेगा।
ना खाने का फल देखेगा, ने पानी का सुख पावेगा॥
एक दो गज कपड़े तार सिवा, कुछ साथ न तेरे जावेगा।
ऐ लोभी बन्दे लोभ भरे, तू मर कर भी पछतावेगा॥
जब आसा तिश्ना दूर हुई, और आई गत सन्तोख भरी।
सब चैन हुए आनन्द हुए, बम शंकर बोलो हरी हरी॥8॥

इस हिर्सो हवा की झोली से, है तेरी शक्ल भिकारी की।
पर तुझको अब तक ख़बर नहीं है, लोभी अपनी ख़्वारी की॥
सन्तोखी साध सरन में रह तज, मिन्नत नर और नारी की।
ले नाम किशन मन मोहन का, जय बोल अटल बनवारी की॥
जब आसा तिश्ना दूर हुई, और आई गत सन्तोख भरी।
सब चैन हुए आनन्द हुए, बम शंकर बोलो हरी हरी॥9॥

है जब तक तुझमें लोभ भरा, तू चोर उचक्का तगड़ा है।
है नीच पुरानी पगड़ी से, जो सर पर तेरे पगड़ा है॥
हर आन किसी से किस्सा है, हर वक़्त किसी से झगड़ा है।
कुछ मीन नहीं कुछ मेख नहीं, सब हिर्सो हवा का झगड़ा है॥
जब आसा तिश्ना दूर हुई, और आई गत सन्तोख भरी।
सब चैन हुए आनन्द हुए, बम शंकर बोलो हरी हरी॥10॥

अब दुनिया में कुछ चीज़ नहीं, इस लोभी के निस्तारे की।
है कीचड़ उस पर लिपट रही, सब हिर्सो हवा के गारे की॥
क्या कहिए वा की बात ”नज़ीर“, उस लोभी लोभ संवारे की।
सब यारो मिल कर जय बोलो, इस बात पे नन्द दुलारे की॥
जब आसा तिश्ना दूर हुई, और आई गत सन्तोख भरी।
सब चैन हुए आनन्द हुए, बम शंकर बोलो हरी हरी॥11॥

शब्दार्थ
<references/>