भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बया का घर / उषा यादव
Kavita Kosh से
बोलो किस चिड़िया का घर?
लटक रहा है डाली पर।
ढेरों तिनके ला –लाकर।
चिड़िया बुनती अपना घर।
दरवाजा इसका नीचे।
सबकी नजरों को खींचे।
सचमुच कितना आकर्षक।
छेड़ो मत इसको नाहक।
घर में रहती जो चिड़िया।
खुश हो कहती वो चिड़िया।
मेरा नाम न जाने क्या?
मुझको कहते सभी बया।