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बरखा बहार फूल कली की चमन की बात करैं / मदन मोहन शर्मा 'अरविन्द'

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बरखा बहार फूल कली की चमन की बात करैं
सुधि भूल जायँ और सलोने सपन की बात करैं

उथले भए लखात सबै रीत-प्रीत के धारे
कित जाय बुझै प्यास कहाँ आचमन की बात करैं

हँसि कैं उतार देत अचक पीठ में छुरी गहरी
सूधे रहे न लोग निरी बाँकपन की बात करैं

बिखरे तमाम पंख जमाने के जाल में जिनके
सपनौ जिनैं उड़ान कहा वे गगन की बात करैं

यजमान की कमी न पुरोहित की तौ पै ध्यान रहै
उनके जरैं न हाथ कहूँ जो हवन की बात करैं