बरम बाबा / केशव मोहन पाण्डेय
खाली आस्था के छाँव ना हवें
जड़ के उदहारण
ना हवें खाली
जल के चढ़ावा के आसन,
हमरा गाँव के बरम बाबा
हवेंऽ
सबके चिंता करे वाला
प्रेम आ सेवा के
निष्ठा आ लोक-मंगल के
राजा के सिंहासन।
उनका बहियाँ के तले
टोला के सगरो लोग बइठेला
सूपा से ओसउनी करत
औरतन के दरद
तिरछोलई करत मरद
सबके किस्सा-कहानी सुनेले
बरम बाबा
कबो ना आँख मुनेले।
ऊ बुढ़वन के चिंता हवे
बेटी के विवाह के,
आँख के असरा हवन
नौजवानन के नोकरी के चाह के,
लइकन के ओल्हा-पाती के डाढ़ हवे,
अगर दिल दुखाइल तऽ
ना दिहें संजीवनी
आक्सीजन के,
ओह बेरा
बिदकल साँढ़ हवे।
बरम-बाबा के छाँव में
सुख, शांति, मुस्कान मिले
इनहीं के गोदिया में
बुद्ध के ज्ञान मिले।
एतना चिंता करे वाला खातिर
एक लोटा जल दिहल
कइसे पाप होला?
बाकीर
जहवाँ नइखे पेड़-खूँट
ऊँहवा के जिनगी अभिशाप होला।
चाहे नाम लीं -
आस्था, विश्वास आ दिखावा,
ई एकदम साँच हऽ
कि जहाँ बाड़े बरम बाबा
ऊँहवा के सबसे शुद्ध रहेला हावा।