( बरवै रामायण उत्तरकांण्ड/पृष्ठ-1)
( पद 43 से 50 तक)
चित्रकूट पय तीर सो सुरतरू बास । 
लखन राम सिय  सुकतरहु तुलसीदास।43। 
पय नहाय फल खाहु परिहरिय आस । 
सीय राम पद सुमिरहु तुलसीदास।44।
सवारथ परमारथ हित एक उपाय। 
सीय राम पद तुलसी प्रेम बढ़ाय।45। 
काल कराल बिलोकहु होइ सचेत। 
राम नाम जपु तुलसी प्रीति समेत।46। 
संकट सोच बिमोचन मंगल गेह। 
तुलसी राम नाम पर करिय सनेह।47। 
कलि नहिं ग्यान बिराग न जोग समाधि । 
राम नाम जपु तुलसी नित निरूपाधि।48। 
राम नाम दुइ आखर हियँ हितु जानु। 
राम लखन सम तुलसी सिखब न आनु।49।
 माय बाप गुरू स्वामि राम कर नाम। 
तुलसी जेहि न  सोहाइ  ताहि बिधि बाम।50।
इति बरवै रामायण उत्तरकांण्ड/पृष्ठ-1