( बरवै रामायण बालकाण्ड/पृष्ठ-2)
( पद 6 से 10तक)
काम रूप सम तुलसी राम स्वरूप।
को कबि समसरि करै परै भवकूप।6। 
साधु सुसील सुमति सुचि सरल सुभाव।
राम नीति रत काम कहा यह पाव।7।
 सींक-धनुष हित सिखन सकुचि प्रभु लीन। 
मुदित माँगि इक धनुही नृप हँसि दीन।8।
केस मुकुत सखि मरकत मनिमय होत।
हाथ लेत पुनि मुकुता करत उदोत।9।
 
सम सुबरन सुषमाकर सुखद न थोर।
सिय अंग सखि कोमल कनक कठोर।10। 
(इति बरवै रामायण बालकाण्ड पृष्ठ 2)