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बरसाने में सामरे की होरी रे / ब्रजभाषा
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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बरसाने में सामरे की होरी रे॥ टेक
उड़त गुलाल लाल भये बदरा, मारत भरि भरि झोरी रे॥
कै मन तो यानै रंग घुरायौ, कै मन केशरि घोरी रे।
नौ मन तो यानै रंग घुरायो, दस मन केशर घोरी रे।
कौन गाम के कुँवर कन्हैया, कौन गाम की गोरी रे।
नन्दगाँव को कुमर कन्हैया, बरसाने की गोरी रे।
कहा हाथ में कृष्ण कन्हैया, कहा हाथ में लिये गोरी रे।
ढाल हाथ में कुमर कन्हैयाजी, लठा हाथ में गोरी रे।
कहा कर रहे ग्वाल बाल सब, कहा करें सब गोरी रे।
ढाल रोपिरहे ग्वाल बाल सब, लठा चलाय रहीं गोरी रे॥