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बरसै छै चारो उहार / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

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बरसै छै चारो उहार मेघा
बरसै छै सूपोॅ के धार!

टिपिर-टिपिर पानी पर बरसै छै पानी,
अपनेती के खौलै आदिम कहानी,
पानी-सें-पानी के प्यार!

माँटी में गजुरै छै अनगिनती बीया,
की बीहो-फतिया छै पिया-पपीहा,
सिरजन के सगरो गुहार!

भीजै छै सुनसान धरती-फुलबारी,
बिसरै छै लोक-लाज सजना के प्यारी,
पशु-पाखीं खोजै ठहार!

उठै छै ऐङना मंे फोंका-पर-फोंका,
झटका सें तीतै छै खिड़की-झड़ोखा,
होतै नै जल्दी निस्तार!
मेघा बरसै छै चारो उहार!