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बरसों-बरस / बैर्तोल्त ब्रेष्त / शुचि मिश्रा

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अब मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ इस रात्रि जब
गुमसुम आकाश, सफ़ेद बादल करते हैं करतब
पानी अपना गुस्सा उतारता है बजरी पर
हवा काँपती है बंजर ज़मीन के ऊपर
पर्वतों की ढलान से झरते हैं झरने
आकाश में बादल बने
रहते बरसों-बरस

ये बरस वीरान होंगे जब उसके बाद भी
बादल और कोहरा रहा आएगा
बजरी पर गुस्सा उतारता ही रहेगा पानी
और बंजर ज़मीन पर एक झोंका थरथराएगा !

अँग्रेज़ी से अनुवाद : शुचि मिश्रा

लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िए
                 Bertolt Brecht