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बरसों की भाग-दौड़ / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
बरसों की भाग-दौड़ तोल कर
बिजली का एक पोल आया है
बारिश में, सर्दी में, धूप में
अधबूढ़ी देह को थकाया है ।
इस टाल-मटोल में, अबेर में,
झरबेरी रुपयों के ढेर थे
अपनी फ़रियाद तो छटंकी थी
दफ़्तर के भाव सवा सेर थे
बमुश्किल बीच के बटोही ने
अफ़सर की आँख को झुकाया है ।
चमका जब आँखों में वायदा
चूहे ने कुतर दिया कायदा
घण्ती से जाग गई चाकरी
जब दीखा धन्धे में फ़ायदा
आदत की आरती उतार कर
मौलिक अधिकार जगमगाया है ।