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बरसो जल / नंदकिशोर आचार्य

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बाँहें फैलाये
देवदार जंगल के सीने में
खुला गहरा ताल
तैरती है हँसिनी-सी द्वीपिका

बरसो, और बरसो जल
ताल को भरा कर दो
द्वीपिका को हरा

उगे थोड़ी घास
कोई गाछ
कुछ फूल-फल।

बरसो, प्यार के जल !

(1980)