बरसो हे सावन मनभावन
धरती को कर दो वृन्दावन
रचो आस के रास हृदय में
गाकर म्रुदु गर्जन की लय में
उबरें मन डूबे संशय में
आओ हे सुधियों के धावन
हर लो तीनों ताप मनुज के
मिटें कष्ट मानस के रुज के
हों निर्बन्ध पराक्रम भुज के
कर दो हे प्राणों को पावन
आई है संक्रान्ति देश पर
ठेस यहाँ लग रही ठेस पर
धिक है छलियों के सुवेष पर
मारो हे दुर्दिन का रावन
15.07.1962