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बरहा बरीस रुकमिनि अँचरा झँबाबल / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बेटी पूर्ण निष्ठा के साथ पिता के घ्ज्ञर रहकर अब विवाह के योग्य हो गई है। बेटी की माँ दासी से खबर भेजकर राजा को बुलवाती है। राजा के आने पर वह बेटी के विवाह की चर्चा करती है। राजा योग्य वर ढूँढ़कर लौटने पर कहते हैं- ‘सभी जगह ढूँढ़ आया, लेकिन अपनी बेटी के योग्य वर कहीं नहीं मिला।’ जब लड़की स्वयं अपने योग्य वर का निर्देश करती है और उसी से शादी कर देने का अनुरोध करती है।
इस गीत में स्वयंवर-प्रथा की ओर संकेत है।

बरहा बरीस रुकमिनि अँचरा झँबाबल<ref>उदास होना; अधिक पक जाना; अँचरा झँबाबल= अपनी लज्जा को बचाकर रखा; पति से मिलने की आकुल प्रतीक्षा; पूर्ण निष्ठा के साथ रहना</ref>, अबे<ref>अब</ref> रुकमिनि बियहन जोग हे।
लेहाइ सोनाइ<ref>स्नान करके</ref> पीढ़ा चढ़ि बैठल, चीरै<ref>चीरती है</ref> रुकमिनि नामिय<ref>लंबे</ref> केस हे॥1॥
घरऽ सेॅ बाहर भेलि माइ मनायनि, पड़ि गेल रुकमिनि मुख दीठ<ref>दृष्टि</ref> हे।
अँगना बुहारैत सलखो गे चेरिया, सुनु सखिया बचन हमार गे।
जाहो जाहो चेरिया राजा चौखंडिया<ref>चार खंड का बँगला</ref>, राजा के आनहुन<ref>लाओ</ref> बोलाय गे॥2॥
सभहाँ बैठल तोहें राजा जनक रिखि, सुनुन राजा बचन हमार हे।
तोहर कुल राजा रुकमिनि कुमारी, सेहो कैसे सूतै निचिंत हे॥3॥
एतना बचन जब सुनलनि राजा, खड़ा भेलऽ रानी के दुआरि हे।
कौने गढ़ुआ<ref>गाढ़ा; गहरा</ref> दुख पड़लौं हे रानी, चेरी हाथ भेजल्ह समाद हे॥4॥
एतना बचन जब सुनलनि राज, चलि भेलन मगहा मुँगेर हे।
उत्तर खोजलौं बेटी दखिन खोजलौं, खोजि ऐलौं मगहा मुँगेर हे।
तोहरो जुगुत बेटी बर नहीं पैलौं, पैलौं में तपसी भिखारि हे॥5॥
जहाँ जहाँ अजी बाबा अवध नगरिया, जहाँ राजा दसरथ हे।
हुनकहिं<ref>उनके; उन्हीं के</ref> कुल रामजी जनम लेलन, हुनकॉ तिलक चढ़ाबऽ हे॥6॥

शब्दार्थ
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