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बरात / श्रीनाथ सिंह

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मुन्नू मुन्नू आजा आजा
बजने लगा द्वार पर बाजा
पीं पीं चीं चीं ढम ढम ढम ढम।
खिड़की पर से देखेंगे हम
ओ हो, आतिशबाजी छूटी।
फुलवारी सी नभ में फूटी
ऊँचा खूब उठा गुब्बारा,
हो मानो वह लाल सितारा
हाथी घोड़े ऊंट खड़े हैं,
जिन पर लोग चढ़े अकड़े हैं
दिखलाई देतें हैं ऐसे,
मेले की हों चीजें जैसे।
हुई रौशनी कैसी भाई,
चकचौंधि आँखों में आई
कई कई परछाईं लेकर,
चलतें हैं सब चकित हमें कर
चारों तरफ मची है हलचल,
अम्मा, जरा सड़क पर तो चल
देखें कैसा दूल्हा आया,
कैसा उसने मौर बंधाया।