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बर्ग में गुल में शज़र में तू नज़र आने लगे / सिया सचदेव

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बर्ग में गुल में शज़र में तू नज़र आने लगे
ज़र्रे ज़र्रे में तेरी ख़ुशबू नज़र आने लगे

वो जो करता था कभी इमदाद सारे शहर की
उसके शानों पर तिरे बाज़ू नज़र आने लगे

आपकी खामोशियों में आपके इनकार में
अब मुझे इक़रार के पहलू नज़र आने लगे

मैंने जब भी आईना देखा तो मुझको यूं लगा
मेरी सूरत में ही जैसे तू नज़र आने लगे

इससे बढ़ कर और क्या होगी मोहब्बत की दलील
तेरी आँखों में मेरे आँसू नज़र आने लगे

आज तक तो बात बन जाने की कुछ उम्मीद थी
अब मगर हालात बेक़ाबू नज़र आने लगे

ये निगाह ए शौक़ इतनी मोतबर तो हो"सिया"
तेरा ही चेहरा मुझे हरसूं नज़र आने लगे