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बर्फ़ ग़म की हो अहम् की हो / शिव ओम अम्बर

बर्फ़ ग़म की हो अहम् की हो,
बर्फ़ आखि़रकार गलती है।

धूप कह लो चाँदनी कह लो,
रोशनी चूनर बदलती है।

है मदालस ज़िन्दगी कवि की,
लड़खड़ाती है सम्हलती है।

दर्द के शिव की जटा से ही,
गीत की गंगा निकलती है।