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बर्फ़ भी आज हमारा / तेजेन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
ख़बर वहां के पहाड़ों से रोज़ आती है
पड़ोसी गोली से अपनों की जान जाती है
वो कैसे लोग हैं, मरने से जो नहीं डरते
ज़मीन छोडने से शान पे बन आती है
बमों और गोलियों से नाम जितने भी हैं जुडे़
अब उनके नाम की पहचान भी डराती है
वो लोग भी हैं जिन्हें दोस्तों ने लूटा है
हो दिन या रात, याद गांव की सताती है
वतन हमारा है अफ़सोस हम मुहाजिर हैं
बर्फ़ भी आज हमारा बदन जलाती है