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बर्फ की मीनार पर / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र
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फिर वही
पत्थर-शहर की यात्राएँ
क्या बताएँ
लोग सडकों पर मिले हैं
धूप मुट्ठी में दबाये
शाम - खाली हाथ
घर को लौटते हैं
मुँह-छिपाये
भीड़ इतनी
खोजते सब नये सपनों की दिशाएँ
क्या बताएँ
एक बौना आयना है
सब उसी में झाँकते हैं
रोज़ टूटे अक्स
शीशे के महल में
टाँगते हैं
बर्फ की
मीनार पर चढ़ते - सभी होते गुफाएँ
क्या बताएँ