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बर्फ ने कही तेरी मेरी कहानी / शैलजा सक्सेना
Kavita Kosh से
सुबह उठी तो देखा,
छोटे-छोटे बर्फ के टुकड़ों की एक भीड़
आसमान से उतरी चली आ रही है…
बहुत से जा बैठे हैं घरों की छतों पर,
बहुत से पेड़ों. घास..लैंप पोस्टों पर,
बहुतों को मिली सड़क और नाली,
ड्राइव-वे और कारें,
ठसाठस बैठ गये हैं सब एक साथ….
एकसाथ उतरे ये बर्फ के टुकड़े
एकसाथ बने नहीं पानी..
छतों, लैंप पोस्टों वाले सुरक्षित हैं अभी भी
और सड़क पर गिरे थे जो
बन गये कीचड़, हो गये पानी-पानी!
सब जगह वही एक कहानी….
इस बात का बहुत महत्व होता है
कि आदमी किस जगह पैदा होता है!
कम ही होते हैं जो निचली जगह से ऊपर को खिसक आते हैं
और इतिहास के पन्नों में अपनी जगह बनाते हैं,
बाकी तो
पानी से बनते हैं और पानी में मिल जाते हैं॥