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बर्बर प्रदेश / दिनेश कुमार शुक्ल
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आया था झोंका चला गया
सब शान्त हुआ
सब हुए मौन
वे सब जो कवि के साथ-साथ
अक्सर नुक्कड़ पर गाते थे-
वह उनकी अपनी कविता थी
कुछ नारों-सी कुछ गीतों-सी
कुछ चीख़ों की अनुगूँज
खो गयी वह कविता
सावन की हरियाली जैसी
बच्चों की किलकारी जैसी
वह सहम गयी
वह सिमट गयी
हो गया तिरोहित उनका युग
सब सौम्य हुआ
अभिजन फिर से आश्वस्त हुए
अपने-अपने सिद्धासन से
कविगण उतरे
छा गये
हरी काई जैसे
फिर से जल को ढक लेती है
जब हवा शान्त हो जाती है
अब जनान्दोलिनी कविता के
भय से विद्वज्जन हुए मुक्त
अनुवादी कवि को पड़ी चैन
साँसों में वापस हुई साँस
बर्बर प्रदेश के बाल-कवी ने
लूटे जमकर पुरस्कार
हिन्दी कविता यूँ रही खेत
हिन्दी भाषा फिर गयी हार।