भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बर्लिन की दीवार / 8 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
पत्थर निर्जीव नहीं हैं
इनमें छिपे हैं अनंत उपदेश जीवन के,
वरना गुफाएँ जो पहाड़ों के गर्भ में
समेटे होती हैं अंधेरा अपने आप में
क्योंकर कर देती सार्थक तपस्या को
जो उन संतों ने की थी
मानव की दृष्टि ने बहुत दूर, एकांत में
बनाकर इन पत्थरों को संगी अपना
और पैला दिया था उजाला
मानवता के प्रकाश का गली-गली में।
उजाला मानवीय उपदेशों का
जो कि उत्पत्ति है
इन्हीं गुफाओं के गुंजन की
जो पत्थरों से बनी होती हैं।
तभी तो बर्लिन की दीवार के
पत्थरों को तोड़ने में
जो गुंजन पैदा हुई है
वह भी दे रही है एक उपदेश
कि न करों दुस्प्रयोग मेरा।
जब कोई गाड़ता है
मुझे मान खंभा विसी सीमा पर
ढह कर रह जाता है कहर
मेरी माँ मानवता के दिल पर
और रह जाता हूँ बनकर एक बोझ।