भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बर्लिन की दीवार / 9 / हरबिन्दर सिंह गिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पत्थर निर्जीव नहीं हैं
थे तो प्रतीक हैं त्याग के।

जिस तरह किया जाता है
टुकड़े-टुकड़े इनको
मारकर चोटें हथौड़ों की
और पीसा जाता है
इन्हें दो पाटों के बीच,
फिर भी कराह ही सुनाई देती है,
मगर कोई नाम नहीं आँसू का
क्योंकि प्रकृति ने की है
रचना इस पत्थर की
बनाकर इसे प्रतीक त्याग का।

कि तू होगा आधार
हर उस नींव का
जिस पर मानव करना चाहेगा
खड़ी इमारत अपने स्वपनों की।

तभी तो बर्लिन दीवार के
ये ढ़हते टुकड़े पत्थरों के भी
समेटे हुए हैं
अपने आप में त्याग
राजनैतिक स्वार्थों के बलिदान का
और त्याग पूर्व और पश्चिम में
आपस की अहं का।