बलिदान-त्याग के बिना देश का / लक्ष्मी नारायण सुधाकर
बलिदान-त्याग के बिना देश का मिट सकता अनुताप नहीं है
भ्रम अतीत का मिट जाने से कम होता प्रताप नहीं है
निर्भय होकर निर्दयता को करुणा की भाषा सिखवा दो
मलिन पुलिन को पावन कर दो गंगा के जल से नहला दो
सागर का मन्थन कर डालो, अमृत-घट को खोज निकालो
छलक रहा हो जहाँ हलाहल शिवशंकर बनकर पी डालो—
बलिदान-त्याग के बिना देश का मिट सकता अनुताप नहीं है
भ्रम अतीत का मिट जाने से कम होता प्रताप नहीं है
अंगारों पर चलना होगा युग में परिवर्तन लाने को
झंझावातों के आघातों में स्वच्छन्द गीत गाने को
ऊँच-नीच आडम्बर को भस्मसात अब करना होगा
युग-युग का दासत्व मिटाकर समता-सागर लहराने को
किये बिना उपचार रोग का मिट सकता सन्ताप नहीं है
भ्रम अतीत का मिट जाने से कम होता प्रताप नहीं है
स्वाभिमान भर दो प्राणों की आहों का संसार नहीं हो
आँखों में हो चमक सभी के आँसू की जलधार नहीं हो
वह जीवन भी क्या जीवन है जिस जीवन में प्यार नहीं हो
वह मानव भी क्या मानव है जिसे कोई अधिकार नहीं हो
मेघ-मल्हारों के गाने से मरु का घटता ताप नहीं है
भ्रम अतीत का मिट जाने से कम होता प्रताप नहीं है
जहाँ विषमता का तांडव हो समता की सरिता लहरा दो
निपट-निरीहों का सम्बल बन शक्ति संगठित कर पहरा दो
दरिद्रता की जहाँ दरारें धन-कुबेर का कोष लुटा दो
मानवता का कुन्दन हर लो कोलाहल आक्रोश मिटा दो
भले पुरातन अथवा नूतन भूल सुधारो पाप नहीं है
भ्रम अतीत का मिट जाने से कम होता प्रताप नहीं है