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बल मोहन बन में दोउ आए / सूरदास

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राग गौरी

बल मोहन बन में दोउ आए ।
जननि जसोदा मातु रोहिनी, हरषित कंठ लगाए ॥
काहैं आजु अबार लगाई, कमल-बदन कुम्हिलाए ।
भूखे गए आजु दोउ भैया, करन कलेउ न पाए ॥
देखहु जाइ कहा जेवन कियौ, रोहिनि तुरत पठाई ।
मैं अन्हवाए देति दुहुनि कौं, तुम अति करौ चँड़ाई ॥
लकुट लियौ, मुरली कर लीन्ही, हलधर दियौ बिषान ।
नीलांबर-पीतांबर लीन्हे, सैंति धरति करि प्रान ॥
मुकुट उतारि धर्‌यौ लै मंदिर, पोंछति है अँग-धातु ।
अरु बनमाल उतारति गर तैं, सूर स्याम की मातु ॥

भावार्थ :-- बलराम और स्याम--दोनों भाई वन से आ गये । हर्षित होकर मैया यशोदा तथा माता रोहिणी ने उन्हें गले लगाया । (वे बोलीं-) `आज देर क्यों कर दी? तुम्हारे कमलमुख तो सूख रहे हैं । आज दोनों भाई खाली पेट गये थे, कलेऊ भी नहीं कर पाये थे । तुम जाकर देखो तो क्या भोजन बना है । (यह कहकर यशोदा जी ने) रोहिणी जी को तुरंत भेज दिया-मैं दोनों को स्नान कराये देती हूँ, तुम अत्यन्त शीघ्रता करो।' (माता ने) छड़ी ली, हाथ में वंशी ले ली, बलराम जी ने सींग दे दिया, नीलाम्बर और पीताम्बर ले कर अपने प्राणों के समान सँभालकर मैया उनको रखती है । उन्होंने मुकुट उतार कर घर के भीतर ले जाकर रख दिया, सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दर की माता उनके गले से वनमाला भी उतार रही है और अब शरीर मे लगे (गेरू, खड़िया आदि) धातुएँ पोंछ रही हैं ।