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बसन्ती बहार / जनार्दन कालीचरण
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बसन्ती बहार में समीरण उदार हैं
कानन के केशों का सुमन से श्रृंगार है
जल की उमंगों से उठता फुहार है
जीवन के उद्गार से यौवन का उभार है । ।। बसन्ती बहार …
शाखाओं के नर्तन में पवन उदार है
किसलय की चंचलता में स्वर का गुंजार है
पुष्पों की हंसी में सुगन्ध का विस्तार है
गुलमोहर की लाली में सुहागन का मनुहार है ।।
बसन्ती बहार…
चांदी-सी चांदनी में कला का प्रसार है
चिड़ियों की चीं-चीं में संगीत का संचार है
रात्रि के नयनों में निद्रा का खुमार है
जग के सौन्दर्य में कर्त्ता का प्यार है ।। बसन्ती बहार…