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बसन्ती ये हवा ऐसे हमारा दिल जलाती है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
बसंती ये हवा ऐसे हमारा दिल जलाती है ।
हमें सोची हुई हर बात हरदम भूल जाती है।।
करें क्या हम तसव्वुर में तुम्हीं तुम हो बसे रहते
हमारे ख्वाब में हर पल तुम्हारी छवि समाती है।।
चले आओ हमारे ख़्वाब की ताबीर बन जाओ
तुम्हारी याद हर लम्हा निगाहों को लुभाती है।।
परस्तिश में तुम्हारी ही जला दी देह है अपनी
तुम्हारे ही लिये तो जिंदगी की देह बाती है।।
न जाने हो बसे जा कर कहां अनजान नगरी में
चले आओ तुम्हें रो रो के दुखियारी बुलाती है।।
तुम्हारा अक्स ही तो तैरता रहता फ़िज़ाओं में
अअँधेरी रात में सूरत तुम्हारी झिलमिलाती है।।
तुम्हारी याद जब मुझको बहुत बेचैन कर देती
मेरी धड़कन तुम्हारी याद के मोती लुटाती है।।